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कविता

मदिरा

मुंशी रहमान खान


महा पाप सुरापान है देखहु वेद कुरान।
मनह कीन्‍ह दोनहुँ धरम चेतहु परम सुजान।।
चेतहु परम सुजान सुरा तोहि नरक दिखावै।
करै धर्म धन नाश तोहि मल मूत्र खवावै।।
कहैं रहमान मूल्‍य मदिरा करहुँ दान जो वेद कहा।
उसका पुन्‍य स्‍वर्ग लै जावै बचहु लिखा जो पाप महा।।

 


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